Tuesday 5 November 2013

जहरीली बूँदें (भाग:4)

'पहाड़ी आदिवासी लड़की' के साथ जहरीला, फिजियोथेरेपिस्ट, बैल (सांड), भाई, हमसफर, एक लड़की और हठबुद्धि मीटिंग के लिये जाते हैं, मीटिंग में दबंग औरत और काबिल वकील आते हैं. 
जहरीला द्वारा यह पूछने पर कि, अपराध की रात वाले पीड़िता के कपड़े कहाँ हैं, दबंग औरत बताती है कि, कपड़े उसने दो दिन बाद ही 'पहाड़ी आदिवासी लड़की' के उतारते ही धो दिये. 
मीटिंग में इस बात पर चर्चा होती है कि, 'अपराधी' के खिलाफ कैम्पेनिंग की जायेगी. 
लेकिन दबंग औरत 'पहाड़ी आदिवासी लड़की' के अपने और 'दलाल क्रांतिकारी' के प्रति आक्रोश को देखते हुये, अपना डर ज़ाहिर करती है कि, वह अदालत में इन सबके खिलाफ़ भी बोल देगी. 
'पहाड़ी आदिवासी लड़की' अपना आक्रोश ज़ाहिर करते हुये उससे बात करने से इंकार कर देती है. तब दबंग औरत उसके पैर पकड़ कर रोती-गिड़गिड़ाती हुये उससे माँफी मांगती है. 
यह कार्य लगभग एक घंटे तक चलता है. इतने सारे भावनात्मक अत्याचारों के बाद मीटिंग अनिर्णीत स्थिति में खत्म हो जाती है. 
'पहाड़ी आदिवासी लड़की' बहुत भावुक हो जाती है और सुबह तक तुरंत केस करने से इंकार करते हुये कहती है कि वह थोड़ा और टाइम लेगी. 
अगले दिन सब वकील से मिलने के लिये अलग-अलग आटो में निकलते हैं, तभी एक दूसरे "झूठे वकील" का फोन आता है कि, दबंग औरत ने बाथरूम में फांसी लगाकर जान देने की कोशिश की है. यह सुनकर 'पहाड़ी आदिवासी लड़की' उससे मिलने चल देती है. 
फिर वहाँ दबंग औरत के द्वारा उसे भावनात्मक दबाव में लाया जाता है. 
लगातार अलग-अलग विधियों से "पहाड़ी आदिवासी लड़की" पर दबंग औरत और उसके चमचों द्वारा दबाव बनाने से वह टूट जाती है, और बिना केस किये घर चली जाती है.
इधर फिजियोथेरेपिस्ट, जहरीला और अन्य साथी दबंग औरत और दलाल क्रांतिकारी की इन दलालियों के कार्य की विवेचना और 'अपराधी' के खिलाफ कार्यवाही करने के लिये टीम की जनरल मीटिंग बुलाने की मांग करते हैं. 
लेकिन दलालों और उनके चमचों द्वारा इस मीटिंग की मांग को ठुकरा दिया जाता है. 
इस बीच टीम के कुछ सदस्य मीटिंग के उद्देश्य से दूसरे शहरों से आते हैं लेकिन सिर्फ दलाल क्रांतिकारी और दबंग औरत से बात करके बिना अन्य सदस्यों से मिले दलालों और अपराधी के साथ हो जाते हैं. 
तब जहरीला और अन्य साथी अपने स्तर पर कार्यवाही करने का प्रयास करने लगते हैं, जिससे दलाल घबरा जाते हैं और जनरल मीटिंग करने के लिये राजी हो जाते हैं. 
इस मीटिंग में दलाल क्रांतिकारी अपनी गलती स्वीकार करते हुये सबसे माँफी मांगते हुये अपनी शादी की व्यस्तता का बहाना बना कर शादी बीत जाने तक का वक़्त माँगता है. 
मीटिंग में यह भी तय होता है कि, सभी सदस्य अपने अपने स्तर पर 'अपराधी' के खिलाफ कैम्पेनिंग करेंगे.

क्रमशः

Friday 25 October 2013

जहरीली बूँदें (भाग:3)

अब तक आपने "पहाड़ी आदिवासी लड़की" के साथ हुये अन्याय और धोखेबाजी के बारे में कुछ घटनाओं को पढ़ा. अब आगे...
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'पहाड़ी आदिवासी लड़की' दरवाज़ा खटखटाती है. अंदर 'क्रांतिकारी भाई', 'जानकार वकील', 'एक लड़की (जो उस रात शराब पीने और 'धर्मनिरपेक्ष अपराधी' के घर रुकने से इंकार कर देती है)' और टीम के एक और सदस्य रहते हैं. 'पहाड़ी आदिवासी लड़की का हर इंसान से विश्वास उठ चुका था, इसलिये वह किसी को कुछ नहीं बताती और उनसे कोई सवाल-जवाब भी नहीं करती है. 'दबंग औरत' से उसके पुराने और भावनात्मक सम्बंध रहते हैं, इसलिये वह उसी को सब बताना चाहती है. लेकिन 'दबंग औरत' एक बलात्कार के मामले में फैसला आने पर उस पर चर्चा करने के लिये एक न्यूज चैनल के दफ्तर गयी होती है.
इधर 'एक लड़की' को उसी सुबह फेसबूक पर 'धर्मनिरपेक्ष अपराधी' का फ्रेंड रिक्वेस्ट आता है. लड़की सबको दिखाती है;
एक लड़की: "वाऊ, देखो कितने डाऊन टू अर्थ इंसान हैं ना?"
फिर वह उसका रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर लेती है.
फिर 'लड़की' के फोन पर कॉल करता है (जबकि 'लड़की' ने अपना नंबर उसे नहीं दिया था, तो सवाल उठता है कि उसका नबर धर्मनिरपेक्ष अपराधी के पास कैसे पहुँचा?) लड़की उसका नंबर नहीं जानती इसलिये नहीं उठाती. फिर वह 'अपराधी' उस लड़की को 'वाट्स अप' पर ढूंढ कर उसपर उसको संदेश भेजता है, "फोन उठाओ"
लड़की: "आप कौन?"
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: "अपराधी"
लड़की: "ओह सर आप है, मेरे पास आपका नंबर नहीं है ना, इसलिये नहीं उठाया."
अपराधी: "आज घर आ जाओ."
लड़की: "आज तो मैं अपने घर जा रही हूँ सर, फिर कभी आ जाऊँगी."
अपराधी: "नहीं, आज ही आ जाओ."
लड़की: "नहीं सर. आज मेरे कुछ रिश्तेदार आने वाले हैं, इसलिये मैं नहीं आ सकती."
अपराधी: "बहुत हो गयी रिश्तेदार. अब यह सब छोड़ो और यहाँ आ जाओ. और यह बात किसी को मत बताना."
लड़की: "सॉरी सर, मैं नहीं आ सकती."
अपराधी उदास होकर : "मैं बहुत निराश हूँ."
फिर इसी तरह की बात होती रहती है.
शाम को जब 'दबंग औरत' अपने फ्लैट पर आती है तो 'पहाड़ी आदिवासी लड़की' उसे अपने साथ हुये अन्याय के बारे में बताती है.
दबंग औरत (जो बहुत क्रांतिकारी विचारों के लिये जानी जाती है, वह बजाय इसके कि, उस लड़की को हिम्मत देकर संघर्ष करने के लिये तैयार करे, वो उससे पूछती है कि वह क्या करना चाहती है, ताकि वह लड़की अपनी मुश्किलें याद करके संघर्ष करने से पीछे हट जाये. 'दबंग औरत' का रुख देखकर 'पहाड़ी आदिवासी लड़की' कहती है कि वह उस अपराधी पर कार्यवाही बाद में करेगी, लेकिन अभी उसका मेडिकल करा दिया जाये, लेकिन 'दबंग औरत' यह कह कर उसे शांत कर देती है कि, इससे पुलिस रिपोर्ट करवाना ही पड़ेगा. तब 'क्रांतिकारी भाई' कहते हैं कि, पुलिस रिपोर्ट करके क्या होगा, इससे मामला कई साल चलेगा, फालतू में पैसे भी लगेंगे और कुछ होगा भी नहीं. फिर 'दबंग औरत' और 'क्रांतिकारी भाई' उसे 'आई-पिल्स' लाकर खाने के लिये देते हैं. 'पहाड़ी आदिवासी लड़की' अपने इतने बुरे दिनों को देखकर रोने लगती है.
इधर 'एक लड़की' जिसे 'अपराधी' बार-बार अपने घर बुलाता है, उसे घटना के तीन-चार दिन बाद 'पहाड़ी आदिवासी लड़की' के साथ हुये अन्याय के बारे में बताया जाता है, जबकि उनको पता होता है कि, 'अपराधी' उस लड़की को अपने घर बुलाने की कोशिशें कर रहा है.
बात धीरे-धीरे फैलती है. यह बात फैलते-फैलते किसी तरह, 'जहरीला, फिजियोथेरेपिस्ट, बैल, हमसफर और 'भाई' तक पहुंचती है. तब सब 'एक लड़की' के साथ 'दबंग औरत' के फ्लैट जाते हैं, जहाँ 'दबंग औरत' और 'क्रांतिकारी भाई' ने 'पहाड़ी लड़की' को भड़का रखा था, कि वे उसको बदनाम कर देंगे. जब जहरीला और बाकी लोग अपने सवाल उनके सामने रखते हैं, सारे सवालों में से किसी का जवाब नही मिलता. सिर्फ भावनात्मक बातें की जा जाती है.
क्रांतिकारी भाई कहते हैं कि उन्हें "इस घटना के बाद से नींद नहीं आई है, उन्हें सपने आ रहे हैं कि, जैसे उनकी ही बहन का उनके सामने बलात्कार हो रहा है. वे 'धर्मनिरपेक्ष अपराधी' को तुरंत मारना चाहते हैं, लेकिन चार दिन से हम 'पहाड़ी आदिवासी लड़की' को ही संभालने में लगे हैं. इसे 'अपराधी' से इतनी घिन्न आ चुकी है कि, उसका नाम लेते ही इसको उल्टी आ जाती थी. हमारी पहली प्राथमिकता इसको नार्मल करना था. ऐसे में हम केस करने और किसी और चीज के बारे में कैसे सोच सकते थे." हालांकि उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं रहता कि, फिर इस मामले को हल किये बिना आपने 'पहाड़ी इलाकों' में अपनी टीम काम करने के बाद कैसे सोचा? आपकी टीम के सदस्यों के साथ हुये शोषण के खिलाफ संघर्ष करना क्या आपकी पहली प्राथमिकता नहीं होनी चाहिये थी?
लेकिन कुछ देर बाद ही पहाड़ी लड़की फिजियोथेरेपिस्ट और अन्य साथियों के साथ सामान्य तौर पर बात करने लगती है. यह देखकर 'दबंग औरत' और 'क्रांतिकारी भाई हैरान हो जाते हैं. फिर 'पहाड़ी लड़की' फिजियोथेरेपिस्ट और उनके साथ आये लोगों के साथ बाहर निकलती है और उन्हें सारी बाते बताती है.
फिर तय होता है कि वह लड़की उन सबके साथ जायेगी. जब यह बात 'क्रांतिकारी भाई' को पता चलती है तो उनके होश उड़ जाते हैं, वो दबंग औरत से खुसर-पुसर करते हैं तो दबंग औरत भी इन सबके साथ जाने की बात करती है. लेकिन जहरीला इस बात से मना कर देता है. फिर सब 'पहाड़ी लड़की' को लेकर वहां से निकल जाते हैं.
'पहाड़ी लड़की' के फिजियोथेरेपिष्ट और अन्य साथियों के पास आते ही, 'दबंग औरत' और 'क्रांतिकारी भाई' तमाम भावनात्मक पोस्ट फेसबूक पर लिखने लगते हैं. उनके मन का डर उनके पोस्ट से झलकने लगता है. और इसी बीच 'क्रांतिकारी भाई' अपनी तथाकथित बहन के शोषण के खिलाफ लड़ने के बजाय 'पहाड़ी इलाकों' में कार्य करने के बहाने निकल लेते हैं.
इधर पहाड़ी लड़की धीरे-धीरे सामान्य होती है और दो दिन के अंदर ही केस करने के लिये तैयार हो जाती है, फिर फिजियोथेरेपिस्ट भाई अपने एक परिचित डाक्टर के पास ले जाकर उसका मेडिकल कराते हैं. उसी सुबह 'दबंग औरत' का पहाड़ी लड़की को फोन आता है कि चलो तुम्हारा मेडिकल करवा दे. जबकि जब तक 'पहाड़ी आदिवासी लड़की' उनके पास रहती है तो उनको ऐसा कोई डाक्टर नहीं मिलता जो बिना रिपोर्ट के ही उसकी मेडिकल जांच कर दे.
फिर शाम को फोन आता है कि 'दबंग औरत' सबसे मिलना चाहती है. फिर सब उससे मिलने के लिये चल पड़ते हैं.
.................... क्रमशः (अगले भाग में समाप्त)

Wednesday 23 October 2013

जहरीली बूँदें (भाग:2)

अब तक आप सबने पढ़ा कि, कैसे "क्रांतिकारी भाई' और "दबंग औरत" अपने टीम की एक सदस्य "पहाड़ी आदिवासी लड़की" को बेसुध और लाचार हालत में "धर्मनिरपेक्ष अपराधी" के घर अकेले छोड़ आते हैं. अब आगे.... ***************** रात में "पहाड़ी आदिवासी लड़की" की तब आँख खुली तो उसने पाया कि उसके साथ बलात्कार किया जा रहा था. वह दर्द, अपमान और गुस्से से रोने लगी. उसने छूटने की कोशिश की, लेकिन उसके हाथ-पैर सुन्न पड़े थे. ड्रिंक्स में कोई दवा मिले रहने के कारण वह शारीरिक विरोध में असमर्थ थी.
फिर उस रात जब सारी इंसानियत अपना भरोसा खो चुकी थी, तब उस "पहाड़ी आदिवासी लड़की" के साथ द्विपक्षीय बलात्कार किया गया. वह बार बार बेहोश होती रही. और जब भी उसे होश आता वो खुद को उसी दर्द और अपमान की स्थिति में पाती. उसके दिमाग में बस एक ही सवाल गूँज रही थी; "मेरे टीम के लोग मुझे अकेला छोड़ कर कहाँ चले गये." यह दर्द उसे और भी अंदर ही अंदर मारे जा रही था. सुबह जब उसकी आंख खुली तो उसने अपने साथ बिस्तर में "धर्मनिरपेक्ष अपराधी" को पाया. धर्मनिरपेक्ष अपराधी: "अपने कपड़े पहन लो, काम वाली बाई आती होगी." फिर वह चला गया. "पहाड़ी आदिवासी लड़की" का सर अब भी घूम रहा था. एक बार फिर वह सो गयी. फिर जब दुबारा जागती है तो किसी तरह उठकर दूसरे कमरे में जाकर सोफे पर बैठ जाती है. काम वाली बाई के जाने के बाद "धर्मनिरपेक्ष अपराधी" आकर फिर उसे नोचने खसोटने लगता है. "पहाड़ी आदिवासी लड़की" उसके अंग को नोच देना चाहती है, पर उसके हाथों में इतनी भी शक्ति नहीं बची थी. "धर्मीनिरपेक्ष अपराधी" नहाने चला जाता है, तब वह 'दबंग औरत' को फोन करती है और कहती है की वह आकर उससे कुछ बात करेगी. कुछ ही देर में 'धर्मनिरपेक्ष अपराधी' का ड्राइवर आता है, और वह 'धर्मनिरपेक्ष अपराधी' के साथ 'पहाड़ी आदिवासी लड़की' को 'दबंग औरत' के फ्लैट पर छोड़ने जाता है. 'धर्मनिरपेक्ष अपराधी' रास्ते में ही उतर जाता है. 'पहाड़ी आदिवासी लड़की' को रास्ते प्भर ऊल्टी होती है. फिर ड्राइवर उसे ' दबंग औरत' के फ्लैट के पास छोड़कर चला जाता है. 'पहाड़ी आदिवासी लड़की' जो कि, हर इंसान पर से अपना विश्वास खो चुकी थी, हर एक उस इंसान का चेहरा देखना चाहती थी, जो रात को उसे शिकार होने के लिये अकेले छोड़ आये थे. चलने में बेहद तकलीफ के बावजूद वह एकदम धीरे-धीरे 'दबंग औरत' के फ्लैट की सीढियाँ चढ़ती है. ............. क्रमशः (अगले दो भागों में समाप्त)

Tuesday 22 October 2013

जहरीली बूंदें

कहानी शुरु होती है, एक शराब-पार्टी से. यह पार्टी एक "धर्मनिरपेक्ष अपराधी" द्वारा अपने घर पर दी जाती है. जिसमें एक "क्रांतिकारी भाई" और एक "दबंग औरत" अपने टीम के लगभग 8 सदस्यों के साथ शरिक होते हैं. पार्टी का दौर शुरु होता है.
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: "कौन-कौन किस-किस ब्रांड की शराब पियेगा?"
सभी अपने-अपने ब्रांड के बारे में बताते हैं. इसमें "दबंग औरत" और उनकी टीम के दो और सदस्य "एक लड़की" और "निरपेक्ष भाई" शराब पीने से मना करते हैं. तब पार्टी देने वाला धर्मनिरपेक्ष अपराधी "दबंग औरत" और "निरपेक्ष भाई" पर पीने के लिये कोई दबाव नहीं बनाता है.
लेकिन "लड़की" के पीछे पड़ जाता है और उसे पीने के लिये तरह-तरह के लेक्चर देने लगता है. जैसे;
"पीना चाहिये, पीने से डर खत्म होता है. कुछ नहीं है, बस यह एक डर है."
"हमें समाज की सारी वर्जनाओं को तोड़ना है, जो हमें संकुचित बनाती हैं."
और तमाम तरह की बातें.
"लड़की" बढते दबाव को देखते हुये, टीम के एक सदस्य "जानकार वकील" से कहती है कि, वह उसे एक ग्लास पानी में वोदका की दो बूंद मिलाकर (महक आने के लिये) दे दे. "जानकार वकील" ऐसा ही करते हैं. "लड़की" उस ग्लास को पीकर खाली कर देती है. लेकिन जब उसे नशा नहीं होता है, तब;
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: " तुमने पी है?"
लड़की: "हाँ...!!!"
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: "नहीं तुमने नहीं पी है. रुको मैं पैग बनाकर देता हूँ."
फिर वह धर्मनिरपेक्ष अपराधी अंदर से जाकर वोदका का एक पैग बनाकर लाता है और "लड़की" को देता है.
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: "पियो."
लड़की: "हाँ पी रही हूँ, मुझे अच्छी नहीं लगती, इसलिये धीरे-धीरे पियूँगी."
फिर सब बातों में उलझ जाते हैं तो, "लड़की" वह पैग ले जाकर बेसिन में बहा देती है.
इस बीच जिस 'निरपेक्ष भाई' ने शराब पीने से मना कर दिया था, वह लगभग 9:00 बजे वहाँ से अपने घर जाने के लिये निकल जाते हैं.
पार्टी शबाब पर आती है, इस बीच आप सबको यह बता दें कि, शराब का पूरा इन्तेजाम धर्मनिरपेक्ष अपराधी की तरफ से रहता है, जो उसका ड्राइवर लेकर आता है.
क्रांतिकारी भाई: "अरे 'धर्मनिरपेक्ष अपराधी भाई' वो कविता सुनाइये, जो आपके पिताजी ने लिखी थी."
धर्मनिरपेक्ष अपराधी अपने पिताजी द्वारा लिखी कविता सुनाता है.
"क्रांतिकारी भाई", जिन्होने शायद रोने की ट्रेनिंग टेलीविजन पर आने वाले धारावाहिकों के "सास-बहुओं" से ली है, रोना शुरु करते हैं. उनके नेतृत्व में उनकी पूरी टीम रोने लगती है.
फिर एक बार बातचीत का दौर शुरु होता है. इन बातचीत के दौरों में 'लड़की' बीच-बीच' में अपने 'हमसफर' और 'भाई' से बात करती रहती है, और वहाँ क्या-क्या हो रहा है, यह भी बताती रहती है.
इस बीच धर्मनिरपेक्ष अपराधी 'लड़की' से अलग से बातचीत जारी रखता है.
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: "एक काम करो, 'हमसफर' को छोड़ दो, और मुझे अपना लो."
लड़की इसे मज़ाक के तौर पर लेती है और
लड़की: "अब बहुत देर हो चुकी है, अब ऐसा तो नहीं हो सकता."
फिर बातचीत जारी रहती है.
अब खाने की तैयारी शुरु होती है, सब खाने बैठते हैं. तभी टीम की एक सदस्य "पहाड़ी आदिवासी लड़की" जो एक-एक बोतल 'ओल्ड मोंक' रम नीट (बिना पानी के) पीकर चट्टान की तरह खड़ी रहने के लिये मशहूर है, आश्चर्यजनक ढंग से सिर्फ चार पैग (जिसे पानी मिलाकर बनाया गया था) पीने के बावजूद उल्टियाँ करने लगती है और असहाय होने की स्थिति में पहुंच जाती है.
उसे उल्टी कराने के बाद सब उसे धर्मनिरपेक्ष अपराधी के एक कमरे में ले जाकर बिस्तर पर लिटा देते हैं.
रात के लगभग 12 या 1 बज रहे होते हैं, फिर भी टीम के नेतृत्व की जिम्मेदारी संभालने वाले "क्रांतिकारी भाई" और "दबंग औरत" के कहने पर टीम के सभी सदस्य वहाँ पर 'पहाड़ी आदिवासी लड़की' को अकेले छोड़कर जाने की तैयारी करने लगते हैं. धर्मनिरपेक्ष अपराधी 'लड़की' को फिर अलग ले जाता है.
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: "ऐसा करो, तुम यहीं रुक जाओ."
लड़की: "नहीं सर, मैं नहीं रुक सकती."
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: "नहीं, तुम यहीं रुक रही हो, 'दबंग औरत' को बोल दो."
लड़की 'दबंग औरत' के पास आती है.
लड़की: "मैं यहीं रुक रही हूँ क्या?"
दबंग औरत: "किसने कहा?"
लड़की: "धर्मनिरपेक्ष अपराधी ने."
दबंग औरत: "उन्होने कहा है, ठीक है तुम रुक रही हो."
लड़की: "लेकिन मैं सोऊँगी कहाँ? दो ही कमरे हैं. एक कमरे में 'पहाड़ी आदिवासी लड़की' बेसुध दशा में है, दूसरे कमरे में 'धर्मनिरपेक्ष अपराधी' सोएंगे."
दबंग औरत: "अभी 'पहाड़ी आदिवासी लड़की का कमरा बंद है, लेकिन फिर वो खुल जायेगा, तुम उसमें सो जाना."
लेकिन लड़की टीम के अन्य सदस्यों से सिफारिश कराके अपने रुकने के लिये मना कर देती है.
धर्मनिरपेक्ष अपराधी का चेहरा उतर जाता है, वह लड़की से कहता है;
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: "तुम नहीं रुकी ना...!!! तुम रुकती तो कितना अच्छा होता ना...!!!"
लड़की अपने भोलेपन में 'धर्मनिरपेक्ष अपराधी' का दिल रखने के लिये;
लड़की: "कोई बात नहीं सर, मैं फिर कभी आ जाऊँगी. अभी तो मेरा जाना जरूरी है, लेकिन फिर आऊँगी ना...!!!"
फिर सब बाहर निकलने की तैयारी करने लगते हैं. इस बीच टीम के एक सदस्य "कलाकार भाई" वहाँ खुद के रुकने का प्रस्ताव 'दबंग औरत' के सामने रखते हैं, तब दबंग औरत जोर से डपटते हुये कहती हैं;
दबंग औरत: "नहीं कोई यहाँ नहीं रुकेगा. सब अपने-अपने जूते-चप्पल पहनों और निकलो यहाँ से."
टीम के सभी सदस्य सिटपिटाये हुये, रात के लगभग 1:00 या 1:30 बजे तक (जब सुबह होने में मात्र 4-5 घंटे बाकी रहते हैं), एक बेसुध, असहाय लड़की जो अपने आप में तो बिल्कुल नही रहती उस समय, उसे अकेले छोड़कर वहाँ से निकल लेते हैं.
...................क्रमशः